असफल चंद्रयान-2 मिशन भारत के लिए क्यों जरूरी था?

सितंबर 2019 में चंद्रयान-2 मिशन के दौरान लैंडर ‘विक्रम’ (Vikram Lander) चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। भारत के मिशन चंद्रयान-2 विक्रम लैंडर (Chandrayaan-2 Vikram Lander) जब लैंडर चंद्रमा की सतह से सिर्फ 2 किलोमीटर दूर था, और उसका संपर्क धरती के कंट्रोल रूम से टूट गया।

इसरो के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत भी आखिरी वक्त में जवाब दे गई। इसरो (ISRO) के वैज्ञानिकों ने मिशन मून (Mission Moon) में लैंडिंग की कड़ी मेहनतों के बाद तैयारी की थी लेकिन चाँद की जमीं पर भारत का यान उतारने का पहला प्रयास विफल रहा।

असफल चंद्रयान 2 मिशन भारत के लिए क्यों जरूरी था?

लैंडर (Chandrayaan-2 Vikram Lander) चाँद की सतह से सिर्फ 2 किलोमीटर की दूरी पर साउथ पोल को छूने ही वाला था की दुर्घटनाग्रस्त हो गया। अगर लैंडर ‘विक्रम’ (Vikram Lander) चाँद के सतह को छू लेता तो भारत उन चार देशों की लिस्ट में शामिल हो जाता, जिसने सफलतापूर्वक अपने यान चंद्रमा की सतह पर उतारे हैं।

दुनिया के सभी ताकतवर देशों पर नजर करें तो अब तक अमेरिका,चीन और रुस ने ही इसमें कामयाबी हासिल की है। इस मिशन की शुरुआत के पहले ही यह बात बताई गई थी कि लैंडिंग के आखिरी 15 मिनट बहुत महत्वपूर्ण रहने वाले हैं। और इसी में मिशन (Mission Moon) की कामयाबी निर्भर होगी। 

असफल चंद्रयान 2 मिशन भारत के लिए जरूरी था। क्योंकि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर यान भेजने वाला भारत ही पहला देश है। ऐसा इसलिए क्योंकि चाँद पर गए ज़्यादातर मिशन इसकी भूमध्य रेखा के आस-पास ही उतरे हैं।‌ साथ ही चाँद पर अब तक 41 फीसदी लैंडिंग ही कामयाब रही है।

लैंडर विक्रम (Vikram Lander) को  रात करीब 1 बजकर 38 मिनट पर चाँद की सतह पर उतारने की प्रक्रिया शुरू हुई और 1:44 बजे लैंडर विक्रम ने रफ ब्रेकिंग के चरण को पार भी कर लिया था। 

लैंडर को पहले चाँद की कक्षा में मौजूद ऑर्बिटर से अलग कर चंद्रमा की सतह की ओर ले जाना था।

किंतु, रात करीब 1:52 मिनट पर चाँद पर उतरने के अंतिम चरण में चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2 Vikram Lander) पहुंच चुका था लेकिन उसके बाद चंद्रयान का संपर्क धरती पर मौजूद स्टेशन से टूट गया था।

प्रज्ञान रोवर की भूमिका 

लैंडर के अंदर प्रज्ञान (Pragyan Rover) नाम का रोवर भी था जिसे लैंडर के सुरक्षित उतरने के बाद बाहर निकलकर चाँद की सतह पर वैज्ञानिक पड़ताल करना था।

असफल मिशन के कुछ समय बाद अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA (National Aeronautics and Space Administration) की तस्वीरों को देखकर ISRO के इंजिनियर शानमुगा सिब्रमण्यन ने लैंडर विक्रम को चाँद की सतह पर खोज लिया था। तस्वीरों में जो दिखा उसे विक्रम का मलबा माना गया। LRO की तस्वीरों में शान ने ही फिर यह पता लगाया है कि भले ही विक्रम (Vikram Lander) की लैंडिंग मनमाफिक न हुई थी, मुमकिन है कि चंद्रयान-2 के रोवर प्रज्ञान (Pragyan Rover) ने सही-सलामत चाँद की सतह पर कदम रखा था।

क्या थी इस चंद्रयान 2 मून मिशन की अहमियत?

अगर भारत के प्रज्ञान रोवर (Pragyan Rover) के सेंसर चाँद के दक्षिणी ध्रुवीय इलाक़े के विशाल गड्ढों से पानी के सबूत तलाश पाते तो यह बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण खोज होती।

चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) मिशन की क़ामयाबी NASA के लिए भी मददगार साबित हो सकती थी। जो 2024 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भेजे एक मिशन भेजने की योजना पर काम कर रहे हैं।

चंद्रयान 1 का इतिहास

इस मिशन से पहले 22 अक्टूबर 2008 को, इसरो (Indian Space Research Organization) ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपना पहला चंद्र मिशन चंद्रयान -1 (Chandrayaan-1) लॉन्च किया था।

भारत की पहली चंद्र जांच चंद्रयान -1  को इसरो द्वारा ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (PSLV) का उपयोग करके लॉन्च किया गया था।

इसका उद्देश्य दो साल की अवधि में चंद्र सतह का सर्वेक्षण करना था, ताकि सतह पर रासायनिक संरचना का पूरा नक्शा और त्रि-आयामी स्थलाकृति तैयार की जा सके।

लगभग एक वर्ष के बाद, ऑर्बिटर की कई तकनीकी खराबियों के कारण चंद्रयान -1 ने 28 अगस्त 2009 को लगभग 20:00 यूटीसी पर संचार करना बंद कर दिया, जिसके तुरंत बाद इसरो ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की कि यह मिशन (Chandrayaan-1) समाप्त हो गया है।

मार्च 2017 में, ‘खोया हुआ’ चंद्रयान -1 कैलिफोर्निया में नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) द्वारा चंद्र सतह से लगभग 200 किमी दूर चंद्र कक्षा में पाया गया था।

चंद्रयान 2 के बाद अगले मिशन

ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने अगले साल तक जून महीने में चंद्रयान-3 (सी-3)को लांच करने की योजना बनायी है। यह मिशन (Chandrayaan -3 and ISRO Mission) आने वाले भविष्य में चाँद की सतह पर खोज करने के लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण अभियान है।

इसके अलावा संगठन ने अगले साल की शुरुआत में देश के पहले मानव अंतरिक्ष यान ‘गगनयान’ के लिए ‘‘एबॉर्ट मिशन’’ की पहली परीक्षण करने की तैयारी भी की हुई है।

गगनयान-1 (Gaganyaan-1) के तहत भारत अंतरिक्ष में पहली बार ही इंसानों को भेजेगा। यह मिशन भी अगले मिशन में सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण होगा क्योंकि अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाना और सुरक्षित वापस लाना भी एक बहुत ही बड़ी चुनौती है।

हालांकि, ISRO इसे सफल बनाने में  सक्षम है। ISRO प्रमुख एस. सोमनाथ ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि “चंद्रयान-3  मिशन की लॉन्चिंग यान मार्क-3 के जरिये अगले साल जून महीने में किया जाएगा। 

‘‘एबॉर्ट मिशन’’ और मानवरहित परीक्षण उड़ान की सफलता के बाद ISRO ने 2024 के अंत तक भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष कक्ष में भेजने की योजना भी बनाई हुई है।

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